Guruvar ki vrat katha / Brihaspativar vrat ki katha pdf download free

Guruvar ki vrat katha / brihaspativar vrat ki katha pdf download free | गुरुवार की व्रत कथा विधि / बृहस्पतिवार की व्रत कथा – गुरुवार का दिन बृहस्पति देव का माना जाता हैं. बृहस्पति देव को शिक्षा और बुद्धि का कारक माना जाता हैं. गुरुवार के दिन बृहस्पति देव की पूजा आराधना करने से विद्या, धन, प्रतिष्ठा और मान सम्मान की प्राप्ति होती है तथा मनोवांछित फल मिलता हैं. गुरुवार के दिन बृहस्पति देव की पूजा करने से घर परिवार में सुख शांति और खुशहाली बनी रहती हैं. तो चलो आइये जानते है गुरुवार व्रत कथा के बारे में संपूर्ण जानकारी.

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बृहस्पतिवार माहात्म्य एवं विधि 

यह व्रत गुरुवार के दिन किया जाता हैं जिसमे यह ध्यान रखना चाहिए की पूजा विधि- विधान के अनुसार ही हो. गुरुवार के दिन प्रात: काल उठकर पिली वस्तु से जैसे की पीले फुल, चने की दाल, पीले चावल, पिली मिठाई आदि का भोग लगाकर बृहस्पति देव की पूजा की जाती हैं.

व्रत के दिन एक समय ही भोजन करे तथा भोजन चने की दाल आदि का करे. तथा नमक ना खाए, पीले वस्त्र धारण करे, पीले चंदन और पीले फलों से पूजन करे. इस व्रत में केले का पूजन करे. पूजन करने के पश्चात बृहस्पति देव की कथा सुननी चाहिए.

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गुरुवार की व्रत कथा विधि / बृहस्पतिवार की व्रत कथा | Guruvar ki vrat katha / brihaspativar vrat ki katha pdf download free

प्राचीन समय में किसी राज्य में एक राजा था वह बहुत ही प्रतापी और दानी था. वह प्रत्येक गुरुवार के दिन व्रत रखता था तथा गरीबो और भूखे लोगो को दान करके पूण्य का कार्य करता था लेकिन राजा की रानी को यह बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था. रानी ना तो खुद व्रत रखती थी और ना ही किसी को एक पैसे का दान करती थी तथा राजा को भी ऐसा करने से मना करती थे.

एक समय की बात है जब राजा शिकार करने जंगल में जाते है तब घर में सिर्फ रानी और उसकी दासी ही थी. तब रानी के दरवाजे पर बृहस्पति देव साधू का वेश धारण करके आते है. और भिक्षा मांगते है तब रानी कहने लगती है की “हे साधू महाराज अब मैं इस दान, पूण्य भिक्षा से तंग आ गई हूँ. मुझे कुछ ऐसा उपाय बताइए की मेरा यह सभी धन नष्ट हो जाए और में आराम की जिंदगी जी सकू”.

यह सुनकर बृहस्पति देव ने कहा की “हे देवी तुम तो बड़ी विचित्र हो भला कोई धन से कैसे दुखी हो सकता हैं. अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यो में लगाओ बाग बगीचे बनाओ, कन्याओ का ब्याह कराओ, विद्यालय का निर्माण करवाओ”. लेकिन रानी को साधू की यह बात से कोई भी ख़ुशी नहीं मिली और कहने लगी “मुझे ऐसे कोई धन की आवश्यकता नहीं है जिसे मैं दान करू और उसे संभालने में मेरा समय नष्ट करू”.

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रानी की यह बात सुनकर साधू ने कहा की “हे रानी अगर तुम्हारे मन की यही इच्छा हैं तो में कहू वैसा करो. बृहस्पति वार के दिन अपने घर को गोबर से लीपना, तथा अपने केशो को पिली मिट्टी से धोना और केशो को धोते समय स्नान करना.

राजा को हजामत बनाने को कहना तथा भोजन में मांस मदिरा का सेवन करना और कपड़े धोबी के यहाँ धोने डालना. यह सात बृहस्पति वार करना तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा”. यह कहकर साधू महाराज अंतर्ध्यान हो गए.

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साधू के कहा अनुसार रानी वह करने लगी अभी तो सिर्फ तिन बृहस्पति वार हुए थे रानी का सारा धन नष्ट होने लगा. राजा का परिवार भोजन के लिए तरसने लगा. तब राजा एक दिन बोला की “हे रानी तुम यही पर रहो में दुसरे देश जाता हु.

क्योंकि यहाँ मुझे सभी लोग जानते है इसलिए यहाँ रहकर में कोई छोटा कार्य करना नही चाहता”. और राजा परदेश चला गया वहा जाकर राजा जंगल से लकडिया काटकर शहर में बेचने का काम करने लगा. इसी तरह राजा अपना जीवन व्यतीत करने लगा जहा दूसरी और राजा के परदेश जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी.

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एक समय ऐसा भी आया जब रानी और दासी को सात दिन तक भोजन नहीं मिला. तब रानी ने दासी से कहा की पास के गाव में मेरी बहन रहती हैं वह बड़ी धनवान है तुम उसके पास जाओ और कुछ मांग के ले आओ ताकि हमारा थोडा बहुत गुजारा हो जाए.

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दासी रानी के बहन के घर जाती है उस दिन बृहस्पति वार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पति वार व्रत की कथा सुन रही थी. दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया लेकिन रानी की बहन ने उसकी बातो का कोई जवाब नही दिया.

जब रानी की बहन ने दासी की बातो को अनसुना किया तो दासी को बहुत क्रोध आया. और रानी के पास जाकर दासी ने सभी बात बताई. उधर रानी की बहन ने सोचा की मेरी बहन की दासी आइ थी और मैं उस से नहीं बोली इस बात से वह बहुत दुखी हुई होंगी. रानी की बहन कथा सुनकर और कथा समाप्त करके रानी के घर गई और कहने लगी “हे बहन जब तुम्हारी दासी आइ तब में बृहस्पति वार की कथा सुन रही थी और उस दिन मेरा व्रत था जब तक कथा चलती है तब तक ना तो उठते है और ना ही बोलते हैं. इसलिए दासी को उत्तर नही दे पाई बताओ क्या बात थी”.

तब रानी ने अपने घर की पूरी कहानी सुनाई और कहा की हमारे घर में अन्न नही था हम सात दिन से भूखे थे. यह सुनकर रानी की बहन बोली बृहस्पति देव सबकी मनोकामना पूर्ण करते है तुम देखो शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा होगा. पहले तो रानी को विश्वास नही लेकिन जब दासी ने अंदर जाकर देखा तो अनाज से भरा एक घडा मिला. तब रानी ने उसकी बहन से व्रत के बारे में पूछा जब भोजन नही मिलता तब व्रत ही कीया जाता है यह सोचकर रानी ने बहन से बृहस्पति वार व्रत की विधि के बारे में पूछा.

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तब रानी की बहन ने बताया की बृहस्पति वार के दिन चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड में पूजा करे तथा दीपक जलाए तथा उसदिन पिला वस्त्र पहने और पिला भोजन करे और व्रत कथा सुने. यह कहकर रानी की बहन घर चली गई.

अब रानी ने व्रत का आरंभ किया लेकिन पिला भोजन कहा से लाए वो उनके पास नहीं था. तब इनका व्रत से प्रसन्न होकर गुरुदेव साधारण व्यक्ति के वेश में आकर दो थाली में पिला भोजन देकर जाते हैं. रानी और दासी प्रसन्न हो जाते और भोजन ग्रहण करते हैं.

उसके बाद वे सभी गुरुवार के दिन यह व्रत करने लगी बृहस्पति देव की कृपा से उनके पास फिर से धन आने लगा. परंतु धन आने के पश्चात रानी फिर से आलस करने लगी तब दासी ने उसे समझाया की आपके कारण ही हमारा धन नष्ट हुआ था और अब फिर से आप आलस करने लगे. भगवान की कृपा से हमारे पास फिर से धन आया है. उसे अच्छे कार्य में लगाओ तब रानी ने दान देना शुरू किया भूखे लोगो को भोजन देने लगी इस प्रकार रानी का यश चारो और फ़ैल गया.

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बृहस्पति देव की कहानी

प्राचीन समय की बात है किसी गाव में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था. उनकी कोई भी संतान नहीं थी. ब्राह्मण देवता नियमित भगवान का पूजा पाठ करते थे जबकि उनकी स्त्री ना तो स्नान करती थी और ना ही भगवान का पूजा पाठ करती थी इस बात से ब्राह्मण देवता बहुत दुखी थे.

कुछ समय बाद उनके घर में बेटी का जन्म हुआ. ब्राह्मण देवता के घर फिर से खुशिया आई. उनकी बेटी बड़ी होती है तब वह बृहस्पति देव का व्रत करती हैं. प्रात:काल उठकर वह भगवान विष्णु का झप करती थी. फिर जब वह पाठशाला जाती थी तब हाथ में जौ के दाने रास्ते में गिराते हुए जाती और लौटते समय वह दाने सोने के हो जाते थे वह बीनते हुए घर आती थी.

एक दिन उसकी माँ ने बेटी को सोने के जौ को सूप में फटक कर साफ करते हुए देख लिया तब उसने बेटी से कहा की सोने के जौ को फटक ने के लिए सोने का सूप भी तो होना चाहिए.

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दुसरे दिन गुरुवार था बेटी ने बृहस्पति देव से सोने का सूप देने की प्रार्थना की और भगवान ने उसकी बात मान ली दुसरे दिन पाठशाला से घर आते समय उसे सोने के जौ के साथ सोने का सूप भी मिला. लेकिन उसकी माँ का वही ढंग रहा ना वो कोई देवता की पूजा करती और ना ही स्नान आदि करती थी.

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एक दिन ब्राह्मण की बेटी सोने के सूप में जौ फटक रही थी तब उस नगर के राजा ने उसे देख लिया और उस पर मोहित हो गया. उसने राज दरबार में जाकर मंत्री से निवेदन किया की वह ब्राह्मण के वहा जाए और उनकी बेटी से राजा के साथ विवाह का प्रस्ताव रखे.

मंत्री राजा की बात सुनकर गया और ब्राह्मण से उनकी बेटी के लिए बात की तब ब्राह्मण देवता मान गए और उनकी बेटी की शादी राजा के साथ हो गई.

राजा के साथ शादी होते ही ब्राह्मण देवता फिर से निर्धन होने लगे वह अपनी बेटी के राज महल में गए और सब बात बताई तब उनकी बेटी ने कुछ धन देकर उनकी मदद की लेकिन थोड़े दिन बाद फिर वही बात हुई ब्राह्मण देवता फिर से निर्धन हो गए.

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तब उनकी बेटी ने उसकी माँ को समझाया और कहा की गुरुवार के दिन बृहस्पति देवता का पूजन करने से सभी कार्य सफल होते और धन की कोई कमी नहीं होती. उसकी माँ ने बेटी के कहा अनुसार किया और उनकी सारी मनोकामना पूर्ण हुई. और मृत्यु के बाद ब्राह्मण देवता और उनकी स्त्री को स्वर्ग की प्राप्ति हुई.

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निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको बताया की गुरुवार के दिन बृहस्पति देव की विधि पूर्वक पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते है और धन की प्राप्ति होती हैं. बृहस्पति देव का आशीर्वाद आप पर भी बना रहे हमने इस आर्टिकल (Guruvar ki vrat katha / brihaspativar vrat ki katha pdf download free | गुरुवार की व्रत कथा विधि / बृहस्पतिवार की व्रत कथा) में पूरी विधि बताई है की किस तरह पूजा करे तथा पूजा करने के बाद कथा सुने जो संपूर्ण कथा इस आर्टिकल में हमने लिखी है. और बृहस्पति देव की आरती भी करे वह भी इस आर्टिकल में मौजूद है.

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आशा करते है की हमारे द्वारा लिखा गया आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा.

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