कनकधारा पाठ करने की विधि – श्री कनकधारा स्तोत्र मंत्र तथा चित्र

कनकधारा पाठ करने की विधि – श्री कनकधारा स्तोत्र मंत्र तथा चित्र – कनकधारा पाठ लक्ष्मी माता का पाठ माना जाता हैं. कनकधारा पाठ करने से मनुष्य को लक्ष्मी माता के आशीर्वाद की प्राप्त होती हैं. तथा मनुष्य के जीवन में से आर्थिक तंगी दूर होकर धन की प्राप्ति होती हैं. कनकधारा पाठ माता लक्ष्मी का बहुत ही प्रभावशाली पाठ माना जाता हैं.

ऐसा माना जाता है की कनकधारा का पाठ करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं. माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तथा धन की प्राप्ति के लिए कनकधारा पाठ विधि सहित करना जरूरी हैं. विधि सहित कनकधारा पाठ कैसे करते है. यह जानने के लिए हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े.

kanakdhara-path-krne-ki-vidhi-shri-strotr-mantr-chitr (2)

दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से कनकधारा पाठ करने की विधि तथा श्री कनकधारा स्तोत्र मंत्र बताने वाले हैं. इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने वाले हैं.

तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं.

कनकधारा पाठ करने की विधि

कनकधारा पाठ करने की संपूर्ण विधि हमने नीचे बताई हैं.

  • कनकधारा पाठ करना बहुत ही आसान है. सबसे पहले आपको किसी भी दिन शुभ मुहूर्त निकालकर कनकधारा यंत्र और कनकधार स्त्रोत अपने घर ले आना हैं.
  • अब नियमित रूप से सुबह के समय स्नान आदि करने के बाद अपने सामने कनकधारा यंत्र रख लेना हैं.
  • अब कनकधारा यंत्र की श्रद्धा पूर्वक पूजा करनी हैं. तथा धुप-बत्ती आदि जलानी हैं.
  • इतना हो जाने के पश्चात आपको कनकधारा का पाठ करने की शुरुआत करनी हैं.
  • कनकधारा पाठ पूर्ण हो जाने के बाद माता लक्ष्मी से अपने मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करनी हैं.
  • अगर आपको सुबह के समय कनकधारा पाठ करने का समय नही मिलता हैं. तो बिलकुल इसी प्रकार आप शाम के समय भी कनकधारा पाठ कर सकते हैं.

गर्भ गीता के फायदे / गर्भ संस्कार मंत्र – गर्भ गीता में कितने अध्याय हैं

श्री कनकधारा स्तोत्र मंत्र

श्री कनकधारा संपूर्ण स्तोत्र मंत्र हमने नीचे बताया हैं.

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥

हरिवंश पुराण पाठ के फायदे | हरिवंश पुराण इन प्रेगनेंसी

कनकधारा यंत्र का चित्र

कनकधारा यंत्र का चित्र हमने नीचे बताया हैं.

कनकधारा स्तोत्र का रोज कितना पाठ करना चाहिए

वैसे तो आप अपनी इच्छा अनुसार कनकधारा स्तोत्र का रोजाना पाठ कर सकते हैं. लेकिन कनकधारा स्तोत्र के रोजाना नियमित रूप से 13 पाठ करने चाहिए.

kanakdhara-path-krne-ki-vidhi-shri-strotr-mantr-chitr (3)

कन्या के विवाह के लिए किस मंत्र का जाप करें – सम्पूर्ण जानकारी 

कनकधारा स्तोत्र के फायदे

कनकधारा स्तोत्र के कुछ फायदे हमने नीचे बताए हैं.

  • कनकधारा स्तोत्र करने से माता लक्ष्मी के आशीर्वाद हमेशा के लिए हमारे पर बने रहते हैं. इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं.
  • कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से धन की कमी दूर होकर धन की निरंतर प्राप्ति होती हैं.
  • कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता हैं. तथा हमारे घर में हमेशा के लिए खुशहाली बनी रहती हैं.

इच्छा शक्ति मंत्रअर्थ, साधना, चमत्कार – इच्छा शक्ति कैसे बढ़ाएं

कनकधारा पाठ  करने से जुडी सावधानियां

अगर आप कनकधारा पाठ करते है. तो आपको कुछ सावधानी और नियम का पालन करना होगा. जिसके बारे में हमने नीचे जानकारी प्रदान की हैं.

  • वैसे अगर देखा जाए तो महिलाएं कनकधारापाठ  कर सकती हैं. लेकिन मासिक धर्म के दिनों में पांच दिन तक महिलाओं को कनकधारा पाठ नही करना चाहिए.
  • कनकधारापाठ हमेशा ही सूर्योदय होने के बाद ही करे. सूर्यास्त होने के पश्चात और सूर्योदय नही होने के पहले कनकधारा पाठ  कभी ना करे. ऐसा करने पर आपको कभी भी लाभ नही होगा.
  • अगर मानव सेवा का कार्य कर रहे हैं. या फिर किसी भी सरकारी कार्य से जुड़े हुए हैं. तो ऐसे में आपको दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके कनकधारापाठ  करना चाहिए. इससे आपको विशेष लाभ की प्राप्ति हो सकती हैं.
  • कनकधारापाठ आपको स्वच्छ होने के पश्चात ही करना हैं. यानी की स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके स्वच्छ आसन पर बैठकर ही कनकधारा पाठ करे.
  • अगर आप कनकधारापाठ करने की शरुआत करना चाहते हैं. तो इसके लिए शुक्ल पक्ष का गुरूवार शुभ दिन माना जाता हैं. आपको इस दिन से ही कनकधारा पाठ  करने का आरंभ करना चाहिए. यह विशेष फल देने वाला माना जाता हैं.
  • अगर कनकधारापाठ करते हैं. तो रुद्राक्ष की माला से जाप करे. लेकिन आपके पास रुद्राक्ष की माला मौजूद नही हैं. तो इसके पश्चात आप किसी भी माला को उपयोग में ले सकते हैं. लेकिन पहले रुद्राक्ष की माला लेने की कोशिश करे.
  • कनकधारापाठ आपको प्रत्येक दिन कम से कम दस मिनट करना चाहिए. और जाप करने के पश्चात कम से कम 41 दिन तक जाप करे.

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

कनकधारा पाठ कितने दिनों तक करना चाहिए?

अगर आप कनकधारा पाठ  करने की शुरुआत करते हैं. तो आपको कम से कम 41, 51 या फिर 101 दिन तक कनकधारा पाठ  करना चाहिए. इतने दिन करने पर ही आपको लाभ की प्राप्ति हो सकती हैं.

कनकधारा पाठ  कितनी बार करना चाहिए?

वैसे तो आप अपनी इच्छा अनुसार कनकधारा पाठ  कर सकते हैं. लेकिन एक बार करना भी अच्छा ही माना जाता हैं. कनकधारा पाठ कम से कम दस मिनट तक करे. और सही उच्चारण के साथ करे.

कनकधारा पाठ किस दिन करना शुभ माना जाता है?

कनकधारा पाठ पूर्णिमा, दीवाली, शुक्रवार और गुरूवार जैसे दिनों में करना काफी अधिक शुभ माना जाता हैं. इसकी शुरुआत शुक्ल पक्ष के गुरुवार से करना शुभ माना जाता हैं.

kanakdhara-path-krne-ki-vidhi-shri-strotr-mantr-chitr (1)

 निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से कनकधारा पाठ करने की विधि तथा श्री कनकधारा स्तोत्र मंत्र बताया हैं. इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की हैं. हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा.

दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह कनकधारा पाठ करने की विधि / श्री कनकधारा स्तोत्र मंत्र आर्टिकल अच्छा लगा होगा. धन्यवाद

अति प्राचीन शाबर मंत्र कौन सा है / शाबर मंत्र के नुकसान

मनमुटाव दूर करने का उपाय / रिश्तों में मिठास लाने के उपाय

माथे पर हल्दी का तिलक लगाने के फायदे / नाभि पर हल्दी का तिलक लगाने के फायदे

Leave a Comment