आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे, नियम / आदित्य हृदय स्तोत्र बीज मंत्र – वैसे तो आप काफी सारे स्तोत्र के बारे में जानते होगे तथा काफी सारे स्तोत्र के नाम भी सुने होगे. लेकिन आदित्य ह्रदय स्तोत्र के बारे में काफी कम लोगो को जानकारी होगी. आदित्य ह्रदय स्तोत्र भगवान सूर्य देव का स्तोत्र माना जाता हैं.
हिंदू सनातन धर्म में सूर्य देवता की पूजा अर्चना की जाती हैं. तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी सभी ग्रहों के राजा सूर्य को माना गया हैं. ऐसा माना जाता है सूर्य देवता का आदित्य ह्रदय स्तोत्र करने से मनुष्य के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं. तथा मनुष्य का जीवन सफल बनता हैं.
दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे, नियम तथा आदित्य ह्रदय स्तोत्र बीज मंत्र बताने वाले हैं. इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने वाले हैं. तो यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े.
तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं.
Table of Contents
आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे
आदित्य ह्रदय स्तोत्र के कुछ फायदे हमने नीचे बताए हैं.
- नियमति रूप से सुबह के समय आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य के जीवन में काफी सारे सकारात्मक बदलाव आते हैं.
- आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करने से पिता और पुत्र के संबंध मजबूत बनते हैं. क्योंकि सूर्य देवता को पिता का कारक माना जाता हैं.
- अगर किसी व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी है. तो ऐसे व्यक्ति को रोजाना नियमति रूप से आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए.
- आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति हर एक क्षेत्र में सफल होता हैं. व्यक्ति के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती हैं.
- आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को नकारात्मक विचारों तथा भय से मुक्ति मिलती हैं.
- अगर किसी व्यक्ति का लंबे समय से सरकारी विवाद चल रहा हैं. तो ऐसे जातक को आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. इससे सरकारी विवाद का निवारण होता हैं.
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आदित्य हृदय स्तोत्र बीज मंत्र
आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण बीज मंत्र हमने नीचे बताया हैं.
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥
आदित्य हृदय स्तोत्र नियम / आदित्य हृदय स्तोत्र पाठ करने की विधि
आदित्य हृदय स्तोत्र के कुछ नियम तथा पाठ करने की विधि हमने नीचे बताई हैं.
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करने के बाद इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए.
- पाठ करने से पहले तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें चंदन और रोली डालकर सूर्य देवता को जल अर्पण करे.
- इसके पश्चात आप आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे.
- पाठ पूर्ण हो जाने के पश्चात सूर्य देवता का श्रद्धा पूर्वक ध्यान धरे. तथा अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करे.
- यह पाठ अगर आप रोजाना नहीं कर सकते हैं. तो सिर्फ रविवार के दिन भी कर सकते हैं.
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आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ करने से ग्रहों पर होने वाले प्रभाव
आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य के सोये हुए भाग्य तथा सोये हुए ग्रह जाग जाते हैं. क्योंकि सूर्य को सभी ग्रह का राजा माना जाता हैं. तो सूर्य देवता का पाठ करने से सभी ग्रह पर प्रभाव पड़ता हैं.
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निष्कर्ष
दोस्तों आज हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे, नियम तथा आदित्य हृदय स्तोत्र बीज मंत्र बताया हैं. इसके अलावा इस टोपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की है. हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा.
दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे, नियम / आदित्य हृदय स्तोत्र बीज मंत्र आर्टिकल अच्छा लगा होगा. धन्यवाद
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